पर्यावरण का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। मनुष्य एक पल भी
इसके बगैर नहीं रह सकता। भारत के ऋषि-मुनि जानते थे कि प्रकृति जीवन का स्रोत है
और पर्यावरण के समृद्ध और स्वस्थ होने से ही हमारा जीवन भी समृद्ध और सुखी होता
है। वे प्रकृति की दैवी शक्ति के रूप में उपासना करते थे ओर उसे 'परमेश्वरी' भी कहते थे। उन्होंने पर्यावरण पर बहुत
गहरा चिंतन किया। जो कुछ पर्यावरण के लिए हानिकारक था, उसे आसुरी प्रवृत्ति कहा और जो हितकर था
उसे देवी प्रवृत्ति माना।
भारत के पुराने ग्रंथों में वृक्षों और वनों का चित्रण पृथ्वी
के रक्षक वस्त्रों के रूप में किया गया है | उनको संतान की तरह पाला जाता था और
हरे-भरे पेड़ों को अपने किसी स्वार्थ के लिए काटना
पाप कहा जाता था | अनावश्यक रूप से पेड़ों को काटने पर
दंड का विधान भी था।
मनुष्य यह समझता है कि समस्त प्राकृतिक संपदा पर केवल उसी का
आधिपत्य है हम जैसा चाहे इसका उपयोग करें। इसी भोगवादी प्रवृत्ति के कारण मानव ने
इसका इस हद तक शोषण कर लिया है कि अब उसका अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है।
वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करो, अन्यथा मानव जाति नहीं बच पाएगी। भारतीय
संस्कृति में वृक्षों की रक्षा के महत्व को 'तुलसी' और 'पीपल' के उदाहरण से समझा जा सकता है। इन
जीवनोपयोगी वृक्षों की देवी - देवता के समान ही पूजा की जाती है। पर्यावरण की
दृष्टि से वृक्ष को परम रक्षक और मित्र बताया गया है। यह हमें अमृत प्रदान करता है, दूषित वायु को स्वयं ग्रहण करके हमें
प्राणवायु देता है, मरुस्थल का
नियंत्रक होता है, नदियों की
बाढ़ को रोकता है और जलवायु को स्वच्छ बनाता है इसलिए हमें वृक्षमित्र होकर
जीवनयापन करना चाहिए।