पानवाले के लिए यह एक मज़ेदार बात थी लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और
द्रवित करने वाली यानी वह ठीक ही सोच रहे थे। मूर्ति के नीचे लिखा मूर्तिकार
मास्टर मोतीलाल वाकई कस्बे का अध्यापक था। बेचारे ने महीनेभर में मूर्ति बनाकर पटक
देने का वादा कर दिया होगा। बना भी ली होगी लेकिन पत्थर में पारदर्शी चश्मा कैसे
बनाया जाए- काँचवाला यह तय नहीं कर पाया होगा या कोशिश की होगी और असफल रहा होगा।
या बनाते-बनाते कुछ और बारीकी के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा
अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा।